Mirza Ghalib shayari in Hindi | मिर्जा गालिब शायरी इन हिंदी

Mirza Ghalib shayari in Hindi – दोस्तों जब शायरों की बात की जाए तो मिर्जा गालिब का नाम सबसे पहले आता है क्योंकि यह शायरी के मामले में सबसे मशहूर शायर माने जाते हैं और आपको पता ही होगा कि इनकी शायरी के चर्चे तो हर जगह पर होते हैं दोस्तों मिर्जा गालिब 19वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रसिद्ध उर्दू और फ़ारसी कवि थे दोस्तों मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर सन 1797 में हुआ था और इनकी मृत्यु 15 फरवरी सन 1869 में हुई थी लेकिन आज भी लोग इनकी शायरी पढ़ना और सुनना काफी ज्यादा पसंद करते रिसर्च के अनुसार पाया गया है कि इनकी शायरी को काफी ज्यादा लोग पसंद करते हैं और इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए Mirza Ghalib shayari in Hindi आज का हमारा ये लेख आपको काफी ज्यादा पसंद आने वाला है

Mirza Ghalib shayari

हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो, हमारा शहर तो बस यूं ही रास्ते में आया था

मौत पर भी मुझे यकीन है तुम पर भी एतबार हैं, देखना है पहले कौन आता है हमें दोनों का इंतजार हैं

तुम ना आए तो क्या सहर ना हुई, हां मगर चैन से बसर ना हुई, मेरा नाला सुना जमाने ने, एक तुम हो जिसे खबर ना हुई

जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

कोई मुद्दत की गालिब मर गया पर याद आता है, वह हर एक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता

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हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

इश्क पर जोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब, कि लगाए न लगे और बुझाए ना बने

तु मिला है तो यह एहसास हुआ है मुझको, यह मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी हैं

ना सुनो घर बुरा कहे कोई ना, कहो घर बुरा करे कोई, रोक लो घर गलत चले कोई, बख्श दो गर खता करे कोई

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

Heart touching Mirza Ghalib shayari in Hindi

कितना खौफ होता है शाम के अंधेरे में, मूंछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते

मेरी मोहब्बत तेरा फलसफा तेरी कहानी मेरी जुबानी, अब किस-किस को हम ना करते यकीन मानो अब यह हां में भी ना है

बेवजह नहीं रोता इश्क में कोई गालिब, जिसे खुद से बढ़कर चाहो वह रुलाता जरूर है

आता है कौन-कौन तेरे गम को बांटने गालिब, तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा के देख

कहते हैं जीते हैं उम्मीद पर लोग, हमको जीने की भी उम्मीद नहीं है

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दर्द हो दिल में तो दबा दीजिए, दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए

मैं नादान था जो वफा को तलाश करता रहा गालिब, यह ना सोचा कि एक दिन अपनी सांस भी बेवफा हो जाएगी

है और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का हे अंदाज ए बयां और

यह हम जो हिज्र में दीवार ओ दर को देखते हैं, कभी सबा को कभी नामाबर को देखते हैं

मौत का 1 दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर नहीं आती

मिर्जा गालिब शायरी इन हिंदी

ना वो आ सके न हम कभी जा सके, ना दर्द दिल का किसी को सुना सके, बस खामोश बैठे हैं उसकी यादों में, ना उसने याद किया ना हम उसे भुला सके

इस सादगी पर कौन ना मर जाए ए खुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

जब लगा था तीर तब इतना दर्द ना हुआ गालिब, जख्म का एहसास तब हुआ जब कमान, देखी अपनों के हाथों में

कैसे करूं भरोसा गेरो के प्यार पर, यहां अपने ही लेते हैं मजा अपनों की हार पर

अब किस-किस सितम की मिसाल दूं मैं तुमको, तुम तो हर सितम बेमिसाल करते हो

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इतना दर्द ना दिया कर ए जिंदगी, इश्क किया है कोई कत्ल नहीं

किसी की क्या मजाल थी जो कोई हमें खरीद सकता, हम तो खुद ही बिक गए खरीददार देखके

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

हम तो फना हो गए उनकी आंखे देखकर ग़ालिब, ना जाने वो आइना कैसे देखते होंगे

मोहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

हार्ट टचिंग मिर्जा गालिब शायरी इन हिंदी

इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के

दर्द हो दिल में तो दबा दीजिए, दिल ही जब दर्द बन जाए तो और क्या कीजिए

आईना देख अपना सा मुंह ले के रह गए, साहब को दिल ना देने पर कितना गुरूर था

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन, हमारी जेब को अब हाजत ए रफु क्या है

सबने पहना था बड़े शौक से कागज का लिबास, जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले

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कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता, तुम ना होते ना सही जिक्र तुम्हारा होता

बनाकर फकीरों का हम भेस गालीब, तमाशा ए असल ए करम देखते हैं

हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो, हमारा शहर तो बस यूं ही रास्ते में आया था

न था कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुदा होता, डुबोया मुझको होने ने, ना मैं होता तो क्या होता

पीयू शराब अगर खुम भी देख लूं दो चार, यह सीसा ओ कदह ओ कूजा ओ सुबु क्या है

Mirza Ghalib shayari in Hindi 2 line

गुजर रहा हूं यहां से भी गुजर जाऊंगा, मैं वक्त हूं कहीं ठहरा तो मर जाऊंगा

रंज से खुगर हुआ इंसान तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ी इतनी की आसान हो गई

मेरा दिल बारी है मेरी आंखें नम है, एक ऐसे दर्द से जिसे मैं भूल नहीं पा रहा हूं भटक रहा हूं, बिना दिशा के सांत्वना और स्नेह की तलाश में

मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

जिंदगी से हम अपने कुछ उधार नहीं लेते, कफन भी लेते हैं तो अपनी जिंदगी देकर

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जिसकी उंगली पकड़कर चलना सिखा था मैंने, आज उसी के हाथों में कहीं छाले देखे हैं

थी खबर गर्म के गालिब के उड़ेंगे पुर्जे, देखने हम भी गए थे पर तमाशा ना हुआ

इश्क से तबीयत ने जिस्त का मजा पाया, दर्द की दवा पाई दर्द पे दबा पाया

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत, लेकिन दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है

तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान, झूठ जाना की खुशी से मर ना जाते अगर एतबार होता

Mirza Ghalib shayari in Hindi love

दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है

इश्क पर जोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब की लगाएं, ना लगे और बुझाए ना बुझे

इश्क की तलाश में क्यों निकलते हो तुम, इश्क खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है

यही है आजमाना तो सतना किसको कहते हैं, अदु के हो लिए जब तुम तो मेरा इंतहा क्यों हो

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काइल, जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

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ता उम्र बस एक यही सबक याद रखिए, इश्क और इबादत में नियत साफ रखिए

डाल रखा है मेरी मोहब्बत ने फरिश्तों को कशमकश में, कभी मांगा शिद्दत से तुझे कभी भूलने की दुआ मांगी

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई, दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई

मंजिल मिलेगी भटक कर ही सही, गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं

Mirza Ghalib shayari in Hindi 4 line

नजर लगे ना कहीं उसके दस्त आओ बाजू को, यह लोग क्यों मेरे जख्मी जिगर को देखते हैं

खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है, मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है

उनको देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक, वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

बदनामी का डर है तो मोहब्बत छोड़ दो गालिब, इश्क की गलियों में जाओगे तो चर्चे जरूर होंगे

वो रास्ते जिन पर कोई सिलवट ना पड़ सकी, उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया

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वह उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं, दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धूल गया

फिर उसी बेवफा पर मरते हैं, फिर वही जिंदगी हमारी हैं

हमको उनसे वफ़ा की उम्मीद हैं, जो नहीं जानते वफा क्या है

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लोग कहते हैं दर्द हैं मेरे दिल में, और हम थक गए मुस्कुराते मुस्कुराते

इसलिए कम करते हैं जिक्र तुम्हारा, कहीं तुम काश से आम ना हो जाओ

Heart touching Mirza Ghalib shayari in 2 line

दुख देकर सवाल करते हो, तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो

इश्क मुझको नहीं वहशत ही सही, मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही

मोहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं, हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज रखते हैं

तुम अपने शिकवे की बातें ना खोद खोद के पूछो, हजर करो मेरे दिल से कि उसमें आग दबी हैं

भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी, बादल सा एक निचोड़ के सिरहाने रख लिया

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हम जो सबका दिल रखते हैं, सुनो हम भी एक दिल रखते हैं

उस पर आती है मोहब्बत ऐसे, झूठ में जैसे यकीन आता है

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे, तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे

आ ही जाता वह राह पर गालीब, कोई दिन और भी जिए होते

शक करने वालों को हक नहीं दिया करते, और हक देने वालों पर शक नहीं किया करते

Mirza Ghalib shayari

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अक्सर बेहतरीन की खोज में हम, बेहतर को भी खो देते हैं

इश्क में नामकरण का मजा ही अलग है, वह जिस नाम से भी बुलाए अच्छा लगता है

खुद को किसी की अमानत समझकर हर लम्हा वफादार रहना ही इश्क है

ज्यादा ख्वाहिशें नहीं है अब, बस अगला लम्हा पिछले से बेहतर हो काफी हैं

गुनाह करके कहां जाओगे गालीब, यह जमीन ये आसमान सब उसी का है

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आता है कौन-कौन तेरे गम को बांटने गालिब, तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा कर तो देख

सुनो मुस्कुरा देते हो मेरी हर बात पर, सुनते भी हो या इश्क हो गया है

दो मुलाकात क्या हुई हमारी तुम्हारी निगरानी में सारा शहर लग गया

किसी ने पूछा इश्क हुआ था, हम मुस्कुरा कर बोले आज भी हैं

हम अपनी इसी बात पर गुरूर करते हैं, किसी से प्यार हो या नफरत भरपूर करते हैं

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